शरीर के तकरीबन हर अंग के लिए लाभदायक हैं ये तीन योगासन

शरीर के तकरीबन हर अंग के लिए लाभदायक हैं ये तीन योगासन

योग गुरु सुनील सिंह

योग भगाए रोग की श्रृंखला में आज हम आपको ऐसे तीन आसनों की जानकारी देने जा रहे हैं जो शरीर के तकरीबन हर अंग के लिए लाभदायक हैं। इन आसनों के नियमित अभ्‍यास से आपकी कई शारीरिक परेशानियां तो दूर होंगी ही, आप अपने शरीर में गजब की स्‍फूर्ति, ताजगी और निडरता भी महसूस करेंगे।

गोमुखासन

इस आसन में हमारे शरीर की आकृति गाय के मुख समान हो जाती है। इसलिए हमारे योगियों ने इस आसन का नाम गोमुखासन रखा है।

विधि: जमीन पर बैठ जाएं। उसके बाद बांई टांग को मोड़ते हुए एड़ी को नितम्ब के पास ले जाकर दाएं नितम्ब को एड़ी पर टिकाकर बैठ जाएं। इसी प्रकार दाईं टांग को मोड़कर एड़ी को बाएं नितम्ब के पास लाएं। हमारे घुटनों की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि दोनों घुटने एक-दूसरे के ऊपर आ जाएं। अब बाएं हाथ को पीछे से मोड़कर हथेली को बाहर की ओर रखते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। दाहिने हाथ को ऊपर से मोड़ें और कोहनी सीधी करते हुए दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे से पकड़ लें। थोड़ी देर इस स्थिति में रहें, ध्यान रहे कमर, गर्दन और सिर बिल्कुल सीधा होना चाहिए। नजर सामने की ओर तथा श्वास की गति सामान्य होनी चाहिए। कुछ देर बाद अपनी क्षमतानुसार इस स्थिति में रहने के बाद इसी प्रकार से दूसरी टांग को मोड़कर और हाथों की पोजीशन चेंज कर इसका अभ्यास करें। इस आसन को दोनो ओर से कम से कम 3-3 बार अभ्यास करें।

लाभ: यह आसन दमा तथा क्षय रोगी के लिए रामबाण का काम करता है। इसके अभ्यास से धातु की दुर्बलता, मधुमेह, प्रमेह और बहुमूत्रा आदि रोग दूर हो जाते हैं। जब हम इस आसन में एक तरफ को हाथ उठाते हैं तो एक तरफ का फेफड़े का श्वास अवरूद्ध होता है और दूसरा फेफड़ा तीव्र वेग से चलता है। जिससे हमारे फेफड़ों की सफाई तथा रक्त का संचार बढ़ जाता है। हमारे फेफड़ों के 1 करोड़ छिद्रों में रक्त का संचार भली-भांति होता है। महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी परेशानी और ल्यूकोरिया की शिकायत दूर होती है। महिलाओं का वक्ष स्थल सुडोल बनता है, छाती चौड़ी होती है, पीठ, गर्दन, बाह और टांगे मजबूत होती हैं।

सावधानियां: गठिया के मरीज इसका अभ्यास ना करें।

विशेष: इस आसन का अभ्यास जल्दबाजी में ना करें। साधक जब वज्रासन में बैठने में अभ्यस्त हो जाए तब इस आसन का अभ्यास करना चाहिए।

 

सिंह आसन

इस आसन में हमारे शरीर की आकृति सिंह (शेर) के समान होती है इसलिए हमारे योगियों ने इसका नाम सिंहासन रखा है। इसके अभ्यास से अभ्यासी में सिंह के समान साहस आता है।

विधि: वज्रासन में बैठ जाएं। उसके बाद दोनों हाथ की हथेली के पंजों को शेर की भांति तानकर दोनों घुटनों पर रखें। अपनी जीभ को बाहर निकालकर आंखों को ज्यादा से ज्यादा खोलते हुए या तो अपने आज्ञाचक्र (यानी दोनों आंखों के मध्य आईब्रो पर देखे) या फिर नासिकाग्रह दृष्टि (यानी अपने नाक के टिप) पर देखें। फिर उसके बाद गहरी श्वास भरकर गले से सिंह की भांति गर्जना करते हुए आवाज निकालें। शुरू-शुरू में इसका अभ्यास कम से कम 5 बार और फिर धीरे-धीरे इसको बढ़ाते हुए 10 बार तक ले जाएं।

 

लाभ व प्रभाव: इस आसन के अभ्यास से मुख, दांत, जिह्वा और गले आदि की बीमारी दूर होती है। इसके अभ्यास से निर्भयता अतिशीघ्र आती है, पिंडली, घुटने, अंगुलियों में सुडौलता और सुदृढ़ता आती है। गायक और अभिनेता के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभप्रद है। नेत्र ज्योति बढ़ती है, सिंह समान बलशाली और निडर बनने के बाद भी साधक संयमी बनता है। इसके अभ्यास से तीनों बंध स्वतः लग जाते है। चेहरे की समस्त मांसपेशियों का व्यायाम होता है। इसके निरन्तर अभ्यास से स्वर शुद्धि होती है। थायराईड ग्लैंड की कार्यक्षमता बढ़ती है। छाती, फेफड़े और गले पर विशेष प्रभाव पड़ता है।

सावधानियां: इसका अभ्यास दूषित वातावरण में ना करे। साईटिका के रोगी भी इसका अभ्यास ना करे।

विशेष: अपनी जीभ को यथासंभव ज्यादा से ज्यादा बाहर निकाले और गर्जना करते वक्त पूर्ण शक्ति का प्रयोग करें।                              

योग मुद्रा

यह आसन कुण्डलिनी शक्ति को जगाने में सहायक होता है। कहा जाता है कि इस आसन के अभ्यास से आत्मा और परम पिता का मिलन हो जाता है इसलिए योगियों ने इसे ‘योग मुद्रा’ का नाम दिया है।

विधि: जमीन पर दोनो पैरों को सीधे फैलाकर बैठ जाएं। उसके बाद दाएं पैर को मोड़कर बाएं पैर की जंघा पर रखें और बाएं पैर को मोड़कर दाएं पैर की जंघा पर रखकर पद्मासन में स्थित हो जाएं। अब दाएं हाथ से बाएं हाथ की कोहनी और बाएं हाथ से दाएं हाथ की कोहनी को पकड़ें। गर्दन, पीठ और कमर बिल्कुल सीधी होनी चाहिए। लंबी गहरी श्वास भरें, अब श्वास को निकाल कर धीरे-धीरे कमर के भाग को झुकाते हुए आगे की ओर इतना झुकें कि हमारा माथा ओर ठोड़ी जमीन को छुए। नीचे झुकते वक्त श्वास की गति समान्य होनी चाहिए। जितनी देर आप आसानी पूर्वक इस अवस्था में रूक सकते हैं रुकें और फिर धीरे-धीरे वापस आएं। यह इस आसन का एक चक्र हुआ। कम से कम 3 बार इसका अभ्यास करें।

 

लाभ व प्रभाव: इस आसन के अभ्यास से छाती, श्वास और गले के सभी रोग दूर होते हैं। इससे चेहरे पर लालिमा, कान्ति आती है। इससे सम्पूर्ण शरीर को सुडोलता व लचीलापन प्राप्त होता है, आंखों की ज्योति बढ़ती है। माथा जमीन पर लगाने से आज्ञाचक्र (माथे के बीचो-बीच) पर विशेष प्रभाव पड़ता है, जिससे मनुष्य ध्यान की अवस्था में आ जाता है इससे मानसिक रोग, तनाव, अनिद्रा, अल्जाईमर और पर्किन्सन जैसी बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है। इस आसन से ध्यान, चेतना, आनन्द, एकाग्रता आदि सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। बदहजमी, कब्ज, पेट की गैस, डायबटीज और मोटापे को भी दूर करता है।

सावधानियां: उच्च रक्तचाप, साईटिका, हृदय रोगी और आंखो की बहुत ज्यादा समस्या से ग्रसित लोगों और गर्भवती महिलाओं को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

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